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पीड़ा का व्यापार किसी के कहने पर / वीरेन्द्र खरे अकेला
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पीड़ा का व्यापार किसी के कहने पर
कर बैठे हम प्यार किसी के कहने पर
कब तक सहते ज़ुल्म, उठा ली हाथों में
हमने भी तलवार किसी के कहने पर
माना धोखेबाज़ फ़रेबी तुमने भी
मुझको मेरे यार किसी के कहने पर
थे दर्शक उनके निर्णायक भी उनके
मानी हमने हार किसी के कहने पर
उल्टी राह बता देने का दौर है ये
चलना है बेकार किसी के कहने पर