पीड़ा के श्लोक / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
जलता हुआ दिया यादों का मन्द नहीं पड़ता है पलभर।
प्राणों की वेदना सम्हाली आँखों ने है पलकें भरकर।
रहा बाँधता रूपक तेरे रूप रंग का विफल रहा पर
काश ! जिन्दगी की धारा जो क्षण भर जाती कहीं ठहरकर।
रत्नजटित नीलाम्बर नयनों का पाहुन बनता है निशि में
चूर चूर निदिया की धारा होती सुधियों से टकराकर।
यदि कुछ पढ़़ा लिखा ही होता पढ़ ही लेता प्रश्न न करता
जीवन की अनपढ़ पीढ़ा के श्लोक लिखे हैं उसके मुख पर।
करो प्रतीक्षा चुप ही बैठो कहने का अधिकार नहीं है
देखों जाने कब जागेगी व्यथा कथा सो रही अधर पर।
बजते रहे शंख घण्टे पर क्षणभर को भगवान न जागा,
जग में अटका रहा मुखर कर सका कहाँ विश्वास भरा स्वर।
सब संकल्प विफल है चंचल मन की गति अवरूध कहाँ है ?
पंख विहीन विवश है श्रद्धा डगर डगर पर खाती ठोकर।