पीड़ित की परिचर्या में जो बीते वह पावन पल है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
पीड़ित की परिचर्या में जो बीते वह पावन पल है
देख किसी दुखिया को छलके, वह आँसू गंगाजल है
तन का हो या धन का या विद्या का बल हो दूनिया में
निर्बल के जो काम आ सके, वह बल ही सच्चा बल है
शक्तिमान उस सर्वेश्वर की शक्ति अगम है, अनुपम है
निमिष मात्र में कर सकता वह जल को थल, थल को जल है
गीत उसी के गाता निर्झर, पर्वत की गोदी से झर
उसका ही संगीत सुनाता सरिता का स्वर कल-कल है
याचक है जग सारा सबका एक मात्र है दानी वो
वो चाहे तो पल में हो सकता जंगल में मंगल है
उसकी करूणा के जल ने हैं बड़े-बड़े पातक धोये
क्या चिंता मुझको फिर मेरा मैला जो ये आँचल है
बीत गया सेने-सा जीवन तन की चमक बढ़ाने में
मन का मैल न छूट सका तो व्यर्थ नहाना मल-मल है
कमल सरीखा बना लिया जीवन जिसने जगतीतल में
अनहित उसका कर सकता क्या, माया का यह दलदल है
मंगलमय उसके विधान पर है जिसको विश्वास अटल
क्या उसका परवाह, पंथ ऊबड़-खाबड़ या समतल है
कर्म किए जाने का केवल मिला ‘मधुप’ अधिकार तुझे
करता चल सत्कर्म सोच मत, अच्छा या कि बुरा फल है