भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीपल का पेड़ / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है एक पीपल का पेड़ मेरे गाँव में।
चैन मिलता नहीं अब उसकी छाँव में॥

सूख गये अश्क़ सभी की आँखों के।
चलें हम कैसे चुभे हैं काँटे पाँव में॥

सिक्कों का चश्मा पहनें हैं चिकित्सक।
पैसे नज़र आते हैं उन्हें गरीब के घाव में॥

यह कैसी विडम्बना है देखो ‘साक्षी’।
आने वाला कल भी लगा है दांव में॥

ज़िन्दगी जीने की तमन्ना किये जा रहे थे।
हो गई बहुत देर, अब दिखा छेद नाव में॥