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पीपल है ठूँठ / कुमार रवींद्र
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बूढ़े हैं तुलसीदल
थके हुए जल
मंदिर के कलशों पर धूप रही ढल
फटे हुए झंडे हैं
पीपल है ठूँठ
पथराई देख रही
चंदन की मूठ
नए-नए देवों की पूजा के छल
खाली है पंचपात
बासी हैं फूल
पोथी पर जमी हुई
बरसों की धूल
कौन कहे किस-किस के जूठे हैं फल
टूटे हैं अक्षत
हैं शंख पड़े मूक
बुझे हुए दीपों के
मन में है हूक
बातूनी सीपों के कितने हैं पल