पीर के संग गा रहा हूं / चन्द्रगत भारती
आँसुओं के गीत बैठा
पीर के संग गा रहा हूं।
छोड़कर जबसे गई तुम
ठोकरें ही खा रहा हूं।
जी में आता है कसम से
आज ही जग छोड़ दूं मैं !
डूब मर जाऊँ कहीं पर
और रिश्ते तोड़ दूं मैं !
आज यह निष्ठुर जगत मैं
छोड़कर अब आ रहा हूं।
तुम नहीं तो क्या रहा इस
मतलबी संसार में अब !
खो गये रिश्ते सभी ज्यों
अजनबी,संसार में अब !
इसलिए घायल हृदय अब
हाथ में रख ला रहा हूं।
हाल बेटों का न पूछो
बीवियों के दास हैं वो !
बोझ हमको मानते पर
सालियों के खास हैं वो !
स्वार्थ में डूबे हुए सब
कब इन्हे मै भा रहा हूं।ङ
कोसती है रात दिन वो
जो बहू सबसे बड़ी है
मैं भी क्यों न मर गया था
आज यह कह कर लड़ी है
मुंह हथेली मे छिपा कर
मीत रोने जा रहा हूं।
यह बहू छोटी तुम्हारी
रोज देती गालियाँ बस
मारती है पाँव से वह
ठोकरों में थालियाँ बस
मन व्यथित है आज बेहद
खुद को बेबस पा रहा हूं।