भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीर तो हिम है पिघल जायेगी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीर तो हिम है पिघल जायेगी
फिर नयी धूप निकल आयेगी

दिन खिज़ा के भी बीत जायेंगे
फिर कली खुल के मुस्कुरायेगी

ख्वाब आंखों के सभी सच होंगे
जिंदगी गीत गुनगुनायेगी

जो बुझे दीप हैं जल जायेंगे
रौशनी खूब जगमगायेगी

भय किसी नाग का नहीं होगा
छू के चन्दन को हवा आयेगी

पावनी गन्ध हवन की हरसूं
हर दिशा इक ऋचा सुनायेगी

दीद होगी न अश्क़ से पुरनम
मुस्कुराहट करीब आयेगी