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पीर प्रवाहित है रग-रग में / भावना तिवारी
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पीर प्रवाहित है रग-रग में,
दर्द समाहित है नस-नस में,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है,
प्राण नियंत्रण से बाहर है!
रेचक करना भूल गई हूँ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है!
कैसे ध्यान-धारणा हो अब,
नाड़ी-शोधन ज्ञात नहीं है!
प्रियतम प्रेम प्रयाण से पहले
योग सुभग इक़ सपना भर है!
विचलित-चित्त न धीरज जाने,
विरहा की गति चरम हुई है!
ब्रह्मरन्ध्र तुममें विलीन है,
साँसों की गति विषम हुई है!
आयुष लेकर क्या करना है,
बहुत निकट नटवर-नागर है!
आठों प्रहर साधनामय हैं,
शुभ संकेत प्रदर्शित होता!
चारों-धाम मिले मन भीतर,
अचल-सुहाग समर्पित होता!
अंतर्ज्योतित अभयानंदित,
हृदय आज सुख का सागर है!