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पीले पत्ते की कविता / मणिका दास
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शाम का सूरज सिर पर लेकर
लटकता रहता है पीला पत्ता
एकाकी
अतीत में गुम आत्ममग्न
कहाँ खोया सीने का हरा गान
खोए कहाँ आँखों के हरे सपने
(स्वप्नहीन आँखों में भरकर आँसू बैठा रहता है
यायावर पीला चाँद)
सीने में यंत्रणा की पृथ्वी लेकर
ओ पीले पत्ते
ठिठके हुए हो किसके लिए
और ऐसा भी नहीं कि सीने की टूटी डाल पर बैठकर
इस राह से कोई गीत सुनने के लिए आए !
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार