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पीळा पात / हुसैनी वोहरा
Kavita Kosh से
पीळा पात झड़ रैया है
रूंख ठूंठ होय रैया है
च्यारूंमेर
दहक उठ्या
टेसू अर पलास
अनोखो है
परकत रो दरसाव
वैम मांय मिनख
देख-देख
इचरज करै।
बदळाव परकत रो नेम
ठूंठ रो रूप निखरग्यो
जीवण मांय आयगी नवी रंगत
हिवड़ा मांय होवण लाग्यो
उछब रो उमाव
गूंजण लाग्या फागण रा राग
बाजण लाग्या चंग अर डफ
मिनख ई फूल ज्यूं खिलग्या
पीळा पात झड़ रैया है
मन हो रैयो है हरियो-भरियो।