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पीव बिना जब जीव गमायो / संत जूड़ीराम
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पीव बिना जब जीव गमायो।
सत्त असत्त खबर नहिं जाको मन सुक-दुख को वाग लगायो।
मोह छाक मद मान पान कर सिर दुवदा को भार लदायो।
जो सिनसार हार नहिं माने भक्त बिना जुग-जुग ठहरायो।
आद अंत सब संत गृंथ कह समझ बिना मत फिरे अरुझायो।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें कोट जतन कर बहुविध धायो।