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पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो / 'सिराज' औरंगाबादी
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पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
ज्यूँ ग़ुँच-ए-लब कूँ बंद कर ख़ामोश हो ख़ामोश हो
हो आशिक़-ए-ख़ूनीं-जिगर ज्यूँ लाला उस गुलज़ार में
खा दिल पे दाग़-ए-आशिक़ी गुल-पोश हो गुल-पोश हो
तुझ कूँ अगर है आरज़ू उस ख़ुश-अदा के वस्ल की
ऐ दिल सरापा शौक़ में आग़ोश हो आग़ोश हो
उमड़ा है दरिया दर्द का या रब मुझे रूसवा न कर
आया है जोष इस देग कूँ सर-पोश हो सर-पोश हो
मजलिस में ग़म की ऐ ‘सिराज’ अब वक्त आया दौर का
गर ख़ून-ए-दिल मौजूद है मय-नोश हो मय-नोश हो