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पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती ।
घन गरज-गरज इंगित करते लाये मनमोहन पाती।
मल्लिका मंजू पर मचल रहे श्यामल मिलिंद मतवारे थे।
नवकमल दण्ड मृदु दबा चंच में उड़े हंस सित प्यारे थे ।
थी बिछड़ गयी लावण्यमयी श्री राधा-माधव की जोरी।
कर पल्लव जोड़ पुकार उठी वृषभान किशोरी अतिभोरी।
"क्यों भूल गए प्राणेश! विकल बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली॥३॥