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पुकारता है कोई / शिव रावल
Kavita Kosh से
क्या ख़बर थी के मेरे इंतजार में जाग रहा है कोई,
शब को मैं बस देख रहा हूँ काट रहा है और कोई,
हम ख़ामख़ाँ बतियाते रहते हैं आईने से,
आज पता लगा के उसमें झाँकता है और कोई,
वो नाज़नीं कब क़ातिल बन गई बेवजह,
मैं सबसे कहता हूँ पर भरी भीड़ में गलती से मन जाता है और कोई,
ज़ख्म यूँ तो गिनने में बेहिसाब ठहरे दिल पर ज़माने,
गिनने लगते हैं तो अचानक आंसुओं के कतरे बहाता है और कोई,
हम बेवजह ही घबरा जाते हैं अपनी आवाज़ से 'शिव'
कुछ देर दिल को समझाया तो जाना के पुकारता है और कोई