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पुकार / कमलेश कमल
Kavita Kosh से
तुम्हें लगता है
कि तुम ठगी गई
कि मैं बदल गया हूँ
पर समझाऊँ कैसे
कि तुम तक ही नहीं जीवन
कि माँ जोहती होगी राह
कि ठीक नहीं रहती बाबा कि तबीयत
कि बढ़ता रहता है शुगर और बीपी
कि लड़की वालों को क्या कहा होगा
फ़िर छुटकी की भी करनी होगी शादी
कि सच कहूँ,
तो मैं हूँ यहाँ
पर मन है गाँव में
कि फ़सल कैसी हुई होगी
कि गाय बिया गई होगी
कि रोज़ ही भींगता होगा
आँसू से माँ का आँचल
कि शायद ही बनता होगा
रात का खाना
और हो सके तो समझना
कि तेरे लिए ही मैं भी
छोड़ आया सब।