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पुकार / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
दूर से आती एक पुकार
बिना किसी काट-छाँट के मेरे पास पहुँचती है
दोनों हाथों से उसे थामते हुए
सफ़ेद-मुलायम खरगोश-सा भान होता है
इस बेशक़ीमती पुकार के लिए मेरे पास
कोमल सिरहाने की टेक है
और एक मधुर ग़ज़ल
दूर से आई हुई इस पुकार को
प्रेम की पहली नज़र की
तरह देख रही हूँ