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पुच्छल तारा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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18
पुच्छल तारा
टूटकर जो गिरा
विलुप्त हुआ.
19
बो दूँ फ़सल
मुस्कानों की दिल में
उगूँ उर में।
20
खोलो नयन
बन मधुर स्वप्न
तिरता रहूँ।
21
मैं वो हवा हूँ
जो तेरे दर्द संग
उड़ा ले गई।
22
तुमने छुआ
जैसे किसी ने दी हो
दिल से दुआ।
23
छलके सिंधु
हिलता रहा हाथ
कुछ चू गया।
-0-
24
एक किरन
जग के अँधेरे में
मेरी अपर्णा।
25
प्रतीक्षारत
डबडबाए नैन
आ भी जाओ न!!
26
दीप क्या करे
दिल में जब अँधेरा
दीप भी डरे।
27
दिया था सुख
कि बाँट दो सभी को
दुःख ही बाँटे।
28
फूल कुचले
जो बाँटते उजाला
चुभाए काँटे।
29
मैं हुआ धन्य
प्रेम मिला मुझको
रहा अनन्य
(5-11-21)