भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुण्य प्रसू / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ताक रहे हो गगन?
मृत्य-नीलिमा-गहन गगन?
अनिमेष, अचितवन, काल-नयन-
नि:स्पंद, शून्य, निर्जन, नि:स्वन!

देखो भू को!
जीव प्रसू को!
हरित भरित
पल्लवित मर्मरित
कूजित गुंजित
कुसुमित
भू को!

कोमल
चंचल
शाद्वल
अंचल,
कल-कल
छल-छल
चल-जल-निर्मल,

कुसुम खचित
मारुत सुरभित
खग कुल कूजित
प्रिय पशु मुखरित-
जिस पर अंकित

सुर मुनि वंदित
मानव पद तल!

देखो भू को
स्वर्गिक भू को,
मानव पुण्य प्रसू को!