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पुनर्जन्म / शशि सहगल

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पुनर्जन्म शब्द सुनते ही
मैं सोचने लगती हूँ
चौरासी लाख योनियाँ
क्या होते होंगे इतने जीव?
या इससे भी अधिक
मैंने तो बस
उड़ने, चलने और तैरने वालों को ही देखा है
हाँ तो
मैं पुनर्जन्म की बात कर रही थी
धर्माचार्यों की कसौटी पर
मुश्किल है खरा उतरना
क्योंकि
मोक्ष पद तो उनके अपनों के लिए सुरक्षित होगा।
मुझ जैसे मध्यवर्गीय की क्या बिसात
जो अपनों के लिए अलग
और दूसरों को अन्य मार्ग दिखा सकें।
मर मर कर लौटना पड़ता है
ऐसा मानते हैं सभी
दुविधा में हूँ मैं
आत्मा के अजर, अमर होने का मत
पढ़ा है, सुना है, पर गुना नहीं
खैर, छोड़िये इस बहस को।
मर कर यदि लौटना पड़ा तो!
सवाल उठता है
किस योनि में?
आकाश में उड़ने को जी चाहता है
चिड़िया, तोता, मोर या गिद्ध
तो क्या पक्षी बनूंगी?
कहते हैं अंतिम लालसा करती है
अगली योनि का निर्धारण।
जलचरों में विशाल मत्स्य
बिना किसी कुसूर के
निगल जाता है छोटी मछली को
नहीं, यह सब नहीं।
सागर के तल पर
बालू में पड़ी सीपी!
हाँ, सीपी ही ठीक रहेगी
बेशकीमती चमकदार
आबदार मोती देती है सीपी।
बालू के कण की चुभन को सहती
अपने कोमल मर्म में उसे सहेजे
पूरी ताकत से
उस कसक को
मुस्कान में बदलने को एकजुट
लगी रहती है सीपी
कैसे लगता होगा उसे
यही सोचती हूँ।

ठीक है
सीपी की योनि है उचित मेरे लिए
आखिर इस जन्म के कुछ संस्कार भी तो
जायेंगे मेरे साथ
ज़र्रे की तेज़ चुभन को
अपने में समाये
मोती बनाने की
कोशिश ही तो की है मैंने आज तक!