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पुनर्वास / शैलेन्द्र चौहान
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मन होता जब क्लांत
बनती प्रकृति सहचरी
यह तो है सौभाग्य
हिमालय श्रृंग और चीड़
निकट पा जाता
निहारता उत्कंठा, कौतूहल
और ललक से
स्मृतियों के पहाड़ पीछे
बहुत घने
पहुँचते जंगलों में
सागौन
स्काउट बन सीखता
पहचानता जंगल के रास्ते
संकेत से
झरने का बहता
स्वच्छ पानी,
बीच जंगल
मिल बैठ कर खाना
मन में कितना मीठापन !