पुनर्स्थापना / निमिषा सिंघल
गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक और राजा राममोहन राय नहीं जानते होंगे की कुप्रथा पर रोक लगाने के बाद भी
वे नहीं रोक पायेंगे उन्हे।
बस चोला बदल पुनर्स्थापित कर दी जाएंगी अलग-अलग सदी के आकाओं के हिसाब से।
स्त्रियाँ अनवांटेड और मोस्ट वांटेड के बीच झूला झूलती रह जायेंगी।
आकांक्षाएँ बाज के पंखों-सी अनंत आकाश की गोद में फैलती सिकुड़ती रहेंगी।
ढोल नगाड़ों जनित कथित उल्लासित शोर,
बेड़ी पहना स्वागत करता रहेगा।
संरक्षण की चाहत में स्वर लिपियाँ ख़ुद ही चुन लेती हैं बेड़ियाँ और
मौन हो जाती हैं।
घूमती रहती हैं बेबस वैशाली के खंडहरों में।
सत्य, झुर्रियों के जंगल में लहूलुहान, आदम स्मृतियों-सा विस्मृत उलझा रहता है अपनी खोज में।
लचीली हो चुकी उम्र नियंत्रण पा लेती है ख़ुद पर,
मजबूत होते पंजों की तरह।
कुछ कर गुजरने की ललक और शक्तियों का आह्वाहन बचाए रखता है अस्तित्व को।
अंदर गहरे कुएँ में आत्मा का सूफी नृत्य परमानंद की तरह सुख संतोष देता है।
झांझर-सी बजती संवेदनाएँ आख़िर तानाशाह बन जाती है।
बजने लगते हैं फिर से ढोल नगाड़े अपने पसंदीदा।
विभूषित हो जाती है जब कोई नार
आत्मिक शक्तियों के आवरण से और सवार हो जाता है जुनून तब
रहस्यमयी आत्मा दिखाने लग जाती है रास्ते रोशनी भरे स्वयं का पुनर्स्थापना दिवस मना।