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पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे
हर क़दम पर भेड़िये पहले न थे
अब के बच्चे भी तमंचे रख रहे
इतने सस्ते असलहे पहले न थे
जल को भी दरपन बना लेते थे लोग
इतने गँदले आइने पहले न थे
देश में पहले भी नेता हो चुके
यूँ लुटेरे दोगले पहले न थे
दोस्तो कितना पतन होगा अभी
इस क़दर पुल टूटते पहले न थे
माँगते थे पुत्र , पैसे बाप से
हक़ जताकर छीनते पहले न थे
जब से छूटी नौकरी यह हाल है
यूँ सनम तुम रूठते पहले न थे