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पुरखों ने जो कमाई थी दौलत बची रहे / अजय अज्ञात

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पुरखों ने जो कमाई थी दौलत बची रहे
मौला किसी तरह मेरी इज़्ज़त बची रहे

बेशक न हो मकान कई मंज़िला मगर
सर को छिपाने के लिए इक छत बची रहे

सौ साल जीने की कहाँ मुझको है आरज़ ू
जब तक जियूं शरीर में ताक़त बची रहे

मरने के साथ अंग कोई दान कर चलँू
दुनिया से जाते वक़्त भी ज़ीनत बची रहे

‘अज्ञात’ कोई ऐसा यहाँ काम कर चलूँ
दुनिया में मेरे बाद भी शुहरत बची रहे