भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुरनका खेल / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
कन्ना गुज-गुज, चर-घरबा
कनियां-मनियां, बर-मड़बा
अठ्ठा गोटी, तर-बन्ना
दाय-माय, चुन्नी-चुन्ना
गुल्ली-डंटा, ताली-बित्ती
दौड़ै में मारै छै लत्ती
औका-बौका, बीजू-बन
खेलै में लागै छै मन
सेल कबड्डी, चुक्का पार
घाँस-पात के नथिया हार
एगो लड्डू एगो खाजा
बेटी रानी, बेटा राजा।
साँझें झगड़ा भोरे मेल
बढ़िया छै बचकानी खेल।