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पुरनिमाक चान सँ अनुरोध / राजकमल चौधरी

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जागल छी, कती राति बीतल अछि-ज्ञात ने होइए किछुओ
भुक-भुक कए दू बेर मिझा गेल लालटेन
अन्धकार अछि, अन्धकार पसरल अछ चारू कात
गहन, निस्तब्ध! मुदा, बाहर आँगनमे
चमचम चमकए चानक श्वेत इजोत
की नइँ खिड़कीसँ हुलकी मारत दुइओ छन के लेल
पूरनिमा के चान?
जागल छी, कती राति बीतल अछि-ज्ञात ने होइए किछओ
रूसल प्रिया जकाँ नइँ करऽ मान-अभिमान
चान हे, आबऽ, लालटेन बदलामे दान दएह किछु ज्योति
दुइए पाँती लिखबा लेल आब बचल अछि चिट्ठी
अप्पन रानीकेँ!