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पुरसिश-ए-ग़म का शुक्रिया, क्या तुझे आगही नहीं / अहसान बिन 'दानिश'
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पुरसिश-ए-ग़म का शुक्रिया, क्या तुझे आगही नहीं
तेरे बग़ैर ज़िन्दगी दर्द है, ज़िन्दगी नहीं
दौर था एक गुज़र गया, नशा था एक उतर गया
अब वो मुक़ाम है, जहाँ शिकवा-ए-बेरुख़ी नहीं
तेरे सिवा करूँ पसंद क्या तेरी क़ायनात में
दोनों जहाँ की नेअमतें, क़ीमत-ए-बंदगी नहीं
लाख ज़माना ज़ुल्म ढाए, वक़्त न वो ख़ुदा दिखाए
जब मुझे हो यक़ीं कि तू हासिल-ए-ज़िन्दगी नहीं
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मयकदा गई
फ़ुर्सत-ए-मयकशी तो है, हसरत-ए-मयकशी नहीं
ज़ख़्म पे ज़ख़्म खाके जी, अपने लहू के घूँट पी
आह न कर, लबों को सी, इश्क़ है दिल्लगी नहीं
देख के ख़ुश्क-ओ-ज़र्द फूल, दिल है कुछ इस तरह मलूल
जैसे तेरी ख़िज़ाँ के बाद, दौर-ए-बहार ही नहीं