भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुराना, नया / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी मुझे
कोई कष्ट नहीं दिया ।

कभी नहीं की
कोई कठोर बात ।

फिर भी क्यों
तुम्हारी खिड़की के खूब पास
मेरे पुराने यह प्राण
नई कविता लिए
कितनी देर से खड़े हुए हैं ?

लो, हाथ बढ़ाकर ले लो !

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी