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पुराना रूप / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
नामालूम दिशा में आया हुआ
पत्थर
अपनी लय में बहती नदी की देह को
अशांत किया
नामालूम दिशा में आये हुए पत्थर ने
देर तक नदी
अपनी पुरानी लय-ताल को ढूँढती रही
प्रेम ने जीवन के मस्तक पर
हौले से दस्तक दी
और जीवन के पुराने ज़ायके से विदा ले ली
फिर जीवन अपने उन पुराने जूतों को तलाशता रहा
जिसे पहन वह सीटी बजाते हुए चहलकदमी किया करता था
तयशुदा चीज़े एक बार अपना पुराना अक्स खो दें
तो फिर उनका
खुदा ही मालिक होता है