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पुरानी कमीज़ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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मेरा बेटा

जब कुछ बड़ा हुआ

पहन लेता मेरे जूते

कभी मेरी क़मीज़

चेहरे पर आ जाती चमक

नन्हें पैर - बड़े जूते

छोटा कद, झूलती कमीज़

और खुशी- छूती आसमान ।

जब बराबर कद हो गया,

मेरे जूते और कमीज़

उसके हो गए ।

आज मैंने पहन ली

उसकी पहनी हुई कमीज

थोड़ा चटख रंग वाली

बेटे ने टोका -

"ये पुरानी कमीज़ है

आपको जचती नहीं"

और अगले दिन ले आया

कीमती नई कमीज़-

"इसे पहनें

खूब फबेगी आप पर"

वह नहीं चाहता कि

उसका बाप उतरन पहने ।

वह चला गया अब दूर

दूसरे शहर

घर एकदम खाली –सा

लगता है ।


मैंने फिर पहन ली चुपके से

उसकी वही पुरानी कमीज़

जिसके रेशे-रेशे में

बेटे की छुअन रमी है,

उसका स्पन्दन

धड़कता है मेरी शिराओं में

उसके पसीने की गन्ध

महसूस करता हूँ हर साँस में

इस कमीज़ के आगे निर्जीव है

नई कीमती कमीज़ ।