भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुराने ख़्वाब / अनीता कपूर
Kavita Kosh से
वक्त की एक और ज़ल्लादी तो देखिये
अब तो नींदें भी गज़ब हुई हैं यारों
एक भी नया सपना नहीं आता
पुरानें ख्वाबों से ही काम चलाये जा रहें हैं