पुराने जूते / कुमार कृष्ण
वे अक्सर रहते हैं इन्तज़ार में
कोई आये ले जाये पहनकर अपने साथ
कराये दुनिया की सैर
वे देखना चाहते हैं बची हुई दुनिया
पुराने जूतों के साथ कोई नहीं जाना चाहता
घर से बाहर
जूते आन हैं, बान हैं, शान हैं
हैसियत की पहचान हैं
एक दूसरे से बतियाते हुए
कहते हैं पुराने जूते-
'आज कोई नहीं पूछता हमें
कोई नहीं करता देखभाल
कोई नहीं पोंछता हमारा बदन
नहीं देता मोज़ों की गरमाहट
वे भूल चुके हैं हमारी हिम्मत
हमारा हौसला, हमारा साहस
वे भूल चुके हैं हमारी जवानी, हमारी कुर्बानी
उनकी तमाम हैसियत है-
हमारे संघर्ष की कहानी
वे भूल चुके हैं-
लगातार चल-चल कर, जल-जल कर
घिसते हुए, टूटते हुए
पहुँचाया है यहाँ तक
हम जानते थे थकान की दवा
जानते थे पसीने का स्वाद
जानते थे रिश्तों की गरिमा
हम जानते थे हाट-घराट की साजिशें
जानते थे भूख का व्याकरण
जानते थे घर-द्वार की मर्यादा
पर कोई नहीं थी हमारी औक़ात
हम बिकने वाली चीज़ थे
बहुत आसान था हमें चुरा कर ले जाना
जहाँ सबसे अधिक रहती है ईश्वर की कृपा
वहीं से होता रहा हमारा हरण
हम सदियों से रहे द्वारपाल
हमें बितानी हैं अभी और कई सदियाँ
द्वारपाल बन कर
काश हम होते हिटलर के, नैपोलियन के जूते
शान से रहते किसी अजायबघर में
दाम लेकर करवाते अपने दर्शन
काश हम होते भगत सिंह के साथी'.....
उसी वक़्त गुज़रता है पास से नया जूता
कहता है हेकड़ी दिखाकर-
'शुक्र है तुम्हारे पास बचा है एक अँधेरा कोना
किसी वक़्त भी फेंक दिए जाओगे घर से बाहर'
सहम जाते हैं पुराने जूते
बन्द हो जाती है उनकी गुफ़्तगू
मन-ही-मन करते हैं याचना-
यदि हो हमारा पुनर्जन्म
तो हो ऐसे घर में
जहाँ नहीं हो एडीडास, री बॉक का आना-जाना
जहाँ होती हो पुराने जूतों की कद्र
जो जानते हों-
जूतों की मरम्मत करवाना उसकी अन्तिम साँस तक।