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पुराने शहर पर विश्वास करते हैं लोग / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
जब मन ही मन लगता है
दुकानदार ठगता है
पुराने शहर पर
विश्वास करते हैं लोग
पुरानी चीज़ों से
काम चलाने की कोशिश करते हैं
तंग गलियों में ही सही
बहुत पास से होती है दुआ-सलाम
यहीं है हमदर्द दवाख़ाना
यहीं होता है लोगों का शर्तिया इलाज़
पुराना घड़ीसाज़
जान डाल देता है
मुद्दत से बन्द पड़ी घड़ियों में
टूटी हुई लड़ियों को गूँथना-पिरोना
जानती है एक बुढ़िया
ढूँढ़ रहे लोग उसे
पुराने शहर में
टूट कर बचने के औज़ार
चीज़ों के पुराने अंग
सहेजकर रखे हैं पुराने शहर ने
क्या जानें कब कौन अंग जी जाए
चीज़ें तो बड़ी उमर पाती हैं
चीज़ों को लग जाती लोगों की उम्र
सरे-बाज़ार अब भी कोई देता है अजान
हल्का-सा लगता है चीज़ों का बोझ
लगता है चीज़ें सब यहीं रह जाएंगी।