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पुरीक यात्रा / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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 जीवन यात्रा थि‍क
जैव पथि‍क
अजैव दर्शक
शरीर शाश्वत नै
ई क्षणभंगुर-नाश्वर
आत्‍मा मौलि‍क तत्व
जइपर पंच रचि‍त-
शरीरक कोनो नियंत्रण नै
ऐ अधम शरीरक एक्को क्षणक
कोनो गारंटी वा वारंटी नै
तँए सदि‍खन अपन पथपर
चलैत रहू- चलैत रहू
जतेक क्षणक जीवन
जतेक दि‍न उगैत सुरुजक दर्शन
आनंद उठबैत रहू
सभ भगवत कृपा थि‍क
बूढ़-बुढ़ानुसक मुखसँ सुनैत छलौं
आब देख रहल छी
मोबाइल खरीदैत काल
एक बरखक वारंटी कार्ड भेटल
सोचए लगलौं
भगवान हमरा जनमैकाल
कि‍अए ने मायकेँ
हमरा संग मि‍नटो भरि‍क
वारंटी कार्ड देलनि‍...?
एकर उत्तर देनि‍हारि‍ माय
हमर बौद्धि‍क वि‍काससँ पूर्वहि
“अरुप” भऽ गेली
मर्त्‍य भुवनमे पठबैबला
पर ब्रह्म तँ सहजे नरंकार छथि‍
केकरासँ पूछब...?
‍अंत कालमे बाबाकेँ खोआ खएबाक
सख लगलन्‍हि‍..
जेना दुरगमनि‍याँ कनि‍याँ होथु
आश्चर्य...
कफ, पि‍त्त आ वायुक त्रि‍वेणी
कंठकेँ घेर नेने छल
तैयो मुइलाक कोनो जि‍ज्ञासा नै
कोनो इच्‍छा नै-
केना हएत-
कतए जाएब?
गरुड़ पुराण आ श्राद्ध
समाज स्‍वीकार कऽ रहल
मृतात्माकेँ स्‍वर्ग पठा रहल
मुदा मरनि‍हार- अचंभि‍त
ओकरा केना पता लागए
जे ओ कतए जाएत...?
सभ अन्‍हारेमे वाण चलबैछ-
तँए बेटा-पुतोहुक गारि‍-मारि‍
खाइयो कऽ बाबा जीबए चाहैत छला
हुनक यात्रासँ आजुक यात्राक-
कोनो तुलना नै
बाबाक अंति‍म यात्रासँ पथि‍क सभ
जतरा बनौने छल-
आजुक यात्रा केकरो पसि‍झा देत
प्रस्‍तुत अछि‍ “पुरीक यात्रा”क गाथा
कोनो जगन्नाथ परी वा द्वारि‍का पुरी नै
हमर सहकर्मी सहधर्मी पुरी
पहि‍ने सरुप छल
आब अनूपसँ अरूप भऽ गेल अछि‍
की मनुक्ख...
एतेक आनंदि‍त रहि‍ सकैत अछि‍...?
युवावस्‍थामे ि‍नर्वाणक लगि‍च आबि‍ कऽ
जीवन पथक शि‍खर लग
नै-नै अधगेरसँ पूर्वहि‍
“स्‍थाय वि‍श्राम अवश्‍य हएत”
ई जनैत एतेक शांत मंद मुस्‍कान
आब! भ्रम दूर भऽ गेल
“आनंद” सि‍नेमा देखैत काल
बाबूजी सँ पुछने छलि‍यनि‍
“की ऐ तरहक घटना संभव छैक...?”
हम तँ नै देखने छी
भऽ सकैछ अहाँ देख लेब!
साहि‍त्‍येसँ सि‍नेमा बनल
भलहिं ई व्‍यवसायि‍क साहि‍त्‍य अछि‍
परंच साहि‍त्‍यकारक परि‍कल्‍पना सेहो
ईह लौकि‍के होइत अछि‍
एकटा साहि‍त्‍यकारक तर्ककेँ
तखन तँ काटि‍ देने छलौं...
मुदा! आब तँ भ्रम अवश्‍य दूर भऽ गेल
तीन-तीन अवोधक पि‍ता
“अनूप” अरूप हएत
जनैत छल
केकरो नै कहलक
जीबाक भुभुक्षामे
व्‍याधि‍सँ मुक्ति‍क आशमे
अपन अर्जित सभटा धन
पि‍तृ धर्म आ कंत धर्मक
रक्षा हेतु नष्‍ट कऽ देलक
जीवाक पि‍आसकेँ बढ़बैत गेल
मृत्‍युसँ लड़ैत गेल
अपनहि‍मे सि‍मटि‍
दोसर लग हँसैत
चलि‍ देलक
अंति‍म यात्रामे
केकरोसँ यात्रामे
केकरोसँ नै कहलक
अपन अंर्तव्‍यथा
अपन अंत:करणक पथराएल
पि‍पासा वा उच्‍छवास
अंति‍म आश्चर्य...
जेकरासँ अन्नय सि‍नेह करैत छल
ओइ अर्द्धांगि‍नीसँ केना नुका लेलक...?
हमरो जीवनक तमाम सत्‍यकेँ
ओइ सबला- जे आब अवला!!
कहि‍ नुका सकल
ओकरासँ ओकरे अधि‍कार
केना छीन लेलक...?
बि‍नु कि‍छु कहने छोड़ि‍
चलि‍ देलक कनैत
कोनो गप्‍पकेँ हुनकासँ
नै छल नुकबैत
अथाह व्‍यथाक इनारमे
कनि‍याँकेँ कनैत...
की ओ पाथर छल
एतेक कठोर तँ पाथरो नै
सद्य: ओ छल-हीरा
कठोर टीससँ भरल हीरा
ऊपरसँ चमकैत रहल
कि‍रणक संग हँसैत रहल
हारि‍ गेल तँ चलि‍ देलक
हँसि‍ते चलि‍ देलक
एक बून नोर जौं खसबो कएल
तँ अपन जेठकी अबोध कन्‍याकेँ देख
वाह रौ साहसी
तोहर जबाव नै
ऐ अदम्‍य साहसकेँ
कोटि‍-कोटि‍ नमन!!!
गृहस्‍थ धर्मक एहेन पालन देख
“धर्मराज” जौं हएत
तँ अवश्‍य लजा गेल हएत
ऊपर जा कऽ ओकरा संग-संग
आन दैवा सभसँ पूछि‍ तँ लि‍हैं
आब तीन-तीन अबोधक संग-संग
ऐ अवलाक झाँझ बनल नाह
केना ऐ कुटि‍ल अथाह भव सागरमे
वि‍चरण करतै...?
एहेन अन्‍यायकेँ दैवि‍क चक्र
लोक केना कहतै...?