पुरी : कुछ स्मृतियाँ-1 / जगदीश चतुर्वेदी
समुद्र में ज्वार था
और आसमान में डूब रहा था सूर्य रंग-बिरंगे
आवरण में लिपटा हुआ
मेरे समीप एक चेहरा था
ध्यानमग्न, उद्दीप्त,
आँखों में सूर्यास्त समेटे
किसी वासन्ती पुष्प-सा खिला हुआ ।
मेरी आँखों में तैर रहे थे असम्ख्य सूर्य
और उसकी आँखों में समुद्र
अनायास मैंने अपने अन्दर महसूस किया एक समुद्र
उत्ताल तरंगों के साथ
मुझे खण्ड-खण्ड करने को तरंगित ।
आज भी पुरी की स्मृति
ताज़ा हो जाती है
जब देखता हूँ कोई समुद्र
कोई ध्यानमग्न सौन्दर्य
कोई सूर्यास्त
सप्त रंगों में अपनी
किरणें घोलता हुआ ज्वार-भरे
समुद्र में ।