भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुरुबे नेवतिहे रे बारी / भोजपुरी
Kavita Kosh से
पुरुबे नेवतिहे रे बारी, उगल सुरुजवा के,
सुन रे बारी, पछिमें में बीर सुबहान रे।।१।।
उतरे नेवतिहे रे बारी, पाँचों पाँडो भीमवा के,
सुन रे बारी हे, दखिने में वीर हनुमान रे की।।२।।
अकसे नेवतिहे रे बारी, अकसा कमीनियाँ के, पतलहीं बासुदेव नाग रे।।३।।
डीह चढ़ि नेवतिहे बारी, डीह-डीहुअरवा के, गउँवा चढ़ि बढ़म मसान रे।।४।।
एतना नेवति के बारी, घरे चलि अइहे,
सुन रे बारी हे, गोतिनी के लड़िका बहुत बारे रे।।५।।
थोड़े जे खइहें, बहुत गिरइहें, सुन रे बारी हे, जगवा त दीहें जग भाँड़ रे की।।६।।