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पुरुवा / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’
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बँसवा के झुरमुट में झुर-झुर
झरकल रे पुरुवा।
कारी-कारी बदरा के चढ़ली जवनियां
नील गगन इतराइल;
जमत-झमत फह-फह बगुलन के
लखि-लखि मन मदमाइल;
लहरा पर लहरा दे-दे के
लरकल रे पुरुवा।
नेमुआ के पतरी डेहुँगिया प लच-लच
खेलत खेल छुअउअल;
बिजुरी सजनियाँ बदरवा सजनवां से
खेलत आँख मुदउअल;
बिचड़ा के पतइन पर सर-सर
सरकल रे पुरुवा।
गन्धकी रंगल रंग गोरी के चुनरिया
फर-फर करि उडि़आइल;
देखि के सुनर भेख बिजुरी बदरिया में
घुसि के छपक लुकाइल;
पियवा हित सजनी के बाँव अँग
फरकल ले पुरुवा।
बँसवा के झुरमुट में झुर-झुर
झरकल रे पुरुवा।