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पुर्जे-पुर्जे बिखर गया होगा / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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पुर्जे-पुर्जे बिखर गया होगा।
वो ज़माने से डर गया होगा।
बेवफा उसको कह दिया सबने,
वादः करके मुकर गया होगा।
कुछ को होगी खु़शी कि हम जीते,
कुछ का चेहरा उतर गया होगा।
उनको उतरे हुए इन आँखों से
एक अरसा गुजर गया होगा।
ज़ख्म मेरा ये भर गया जैसे,
ज़्ाख्म उनका भी भर गया होगा।
नाम जिन्दा है आज भी उसका,
ऐसा कुछ तो वह कर गया होगा।
वो पता पूछते मेरा ‘विश्वास’,
जाने किस-किस के घर गया होगा।