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पुर-ख़तर मोड़ से हर बार बचा ले मुझको / पूजा बंसल

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पुर-ख़तर मोड़ से हर बार बचा ले मुझको
या जो रस्ता न मुड़े उस पे चला ले मुझको

जाम इस आरजू के सदके उठाया मैं ने
इतना बहकूँ कि तेरा हाथ संभाले मुझको

प्यार करते थे तो हक़ अपना जताते मुझपर
क्यूँ गये छोड़ के दुनिया के हवाले मुझको

मीर ग़ालिब के अदब से वो अदा सीखी है
जब भी रूठूँ मैं ग़ज़ल कह के मना ले मुझको

प्यार क्या कम है इबादत से मेरे क़ाफ़िर का
बंद पलकों को करे, सामने पा ले मुझको