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पुलवामा मे शहीद भेल सिपाहीक पत्नीक करूण वेदना / आभा झा

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छलि बाट हेरैत प्रियेक प्रिया
धक धक धड़कैत रहनि छतिया।

जखनहिं सँ हुनकर फ़ोन बंद
अवगाहन केर उत्साह मंद।

अपशगुनक किछु-किछु भेलै भान
घुरियाएल मन आ बेकल प्राण।

बिलखय बिलाड़ि पछुआर ठाढ़
नहि जानि ककर जरलै कपार।

बजलै फोनक घंटी जखनहिं
चीत्कार उठल जोरक तखनहि।

मुर्छित भऽ ओ खसलै धड़ाम
क्षण भरि में जुटलै सगर गाम।

मिरगी सन छटपट करै गात
धुधुवाइत पड़ल धुरखुरक कात।

दुइ बरखक नेना ठकियाएल
मायक मुँह ताकय औंनाएल।

के बोल-भरोस देतै एकरा
जीवन पहाड़ बनलै जकरा।

सब शून्य तकै लखि कऽ प्रलाप
नहि देखल जाय विधवा विलाप।

औतै नेता सभ नोर पोछय
दस बीस लाख अनुदान करय।

विरहक धधरा पर त' ब धरत
निज स्वार्थहितक रोटी सेकत।

एहि सहानुभूतिक काज कोन
फाटल करेज पर छिटत नोन।

जाधरि अरि नहि जड़ि सँ उखड़त
प्रतिकार ज्वार धधकइत रहत।

बढ़ि चलू! स' ब सीमाक पार
रिपु रक्तबीज करबै संहार।

धरबै कर में खप्पर कटार
चट-चट पीयब शोणित घटार।

निर्मूल नष्ट होएतै दुश्मन
पुनि व्यथित ने रहत शहीदक मन।

ने कोनो घ' र के खाम्ह खसत
ने सीथ-कोखि ककरो उजड़त।

नभ में सुख शांतिक ध्वज फहरत
जग भरि अविरल आभा अभरत।