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पुलिया / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
बीच पुलिया थी
सो उतर जाते लोग उस पार
फिर आते रहे इस पार
पुलिया को न तो उधर जाना था
ना ही इधर आना था
बस बीच में बने रहना था
पुलिया ने सब सहा
किसी का छलका पानी
किसी का पसीना
किसी का नमक।
पुलिया ने सब देखा
किसी के सपने
किसी के आँसू
किसी का प्यार
पर कहा कुछ नहीं
पुलिया रही बीच में
तो होती रही सबकी आवाजाही आसान।
मनों टन बोझ ने उसे थका दिया
जब वह ढह गई
तब सोचा सबने पुलिया के बारे में।