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पुल / ओक्ताविओ पाज़
Kavita Kosh से
अब और अभी के बीच
मेरे और तुम्हारे बीच
शब्दों का पुल है
उसमें घुसकर
अपने भीतर घुसते हैं आप
शब्द जोड़ते हैं
एक घेरे की तरह हमें पास लाते हैं
एक किनारे से दूसरे किनारे तक
वहाँ हमेशा
एक शरीर फैला रहता है
एक इन्द्रधनुष
जिसकी मेहराब तले सोता हूँ मैं