भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुल / प्रत्यूष चन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाँव जाने वाली नदी पर
अब पुल बन गया है
बारहों मास चलती है गाड़ियाँ
किसी भी मौसम में कोई दिक़्क़त नहीं
खाई को पाट दिया है इस पुल ने

अब नदी के पानी को नहीं छूते हमारे पाँव
नाव की भी कोई ज़रूरत नहीं हमें
मछलियों घोंघों-केकड़ों को नहीं देख पाते हम

भीगे हुए बालू पर पानी की लकीर अब दूर का दृश्य है
पुल ने शहर के बिलकुल पास ला दिया है हमारे गाँव को
पुल ने दूर कर दिया है नदी से हमको