पुश्तैनी घर की त्रासदी / कुमार कृष्ण
मरने से पहले जीतेजी सौंप गए पिता
छोटी बहन को पुश्तैनी घर
वे सौंप गए मेरी स्लेट मेरी तख्ती
लालटेन की रोशनी में चमकते सपने
सौंप गए पत्नी की पायल की पहली खनखनाहट
दीवारों पर टँगे सिंदूरी फूल
बच्चों की किलकारियाँ
वर्णमाला के बस्ते
उनके धनुष-बाण
उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा
पुश्तैनी पसीने के बारे में
नहीं सोचा चिलम की आग के बारे में
वे सौंप गए दादा के हुक्के की गड़गड़ाहट
सौंप गए दादी की पीठ
उन्होंने चुपचाप सौंप दिया-
काँसे की थालियों में बचा जीभ का स्वाद
धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है-
सपनों का ठौर
टूटने लगी है पुश्तैनी छतरी
सड़ने लगी है किताबों की दुनिया
जंग लगा ताला पुकारता है बार-बार
आओ मेरे पास
खोल दो मेरे बंधे हुए हाथ
कभी तो सोचो पुश्तैनी चौकीदार के बारे में
ताला तुनुकमिजाज पिता की
हिमाकत के बारे में सोचता है बार-बार
अपनी नम आँखे बन्द कर लेता है
छोटी बहन नहीं सुनती ताले की पुकार
उसने बन्द कर दी है चाबी कई तालों के अन्दर।