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पुष्पों की नई कथा / कुमार रवींद्र

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फगुनाए जंगल में
      फिर पिछले साल
सूरज को टाँग रहे जेब से निकाल
 
उजले सूर्योदय ले
किरणों के झुंड
लगा रहे
पेड़ों के भाल पर त्रिपुंड
 
महक रहे यादों में सरसिज के ताल
 
पुष्पों की नई कथा
सुनते आकाश
टेसू को साथ लिए
घूमते पलाश
 
मन में फिर जगा रहे धूप के सवाल
 
परियों के शिविर हुए
सारे सीमांत
सुख की इच्छाओं में
साँस है अशांत
 
नए वस्त्र पहन रहे पर्वत के ढाल