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पुस्तकालय प्रसंग / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त / विनोद दास

एक सुनहरे बालों वाली गोरी लड़की कविता पर झुकी हुई है ।
नश्तर जैसी धारदार पेंसिल से वह एक कोरे कागज़ को शब्दों में बदल रही है
बदल रही है शब्दों का बलाघात, लहज़ा और यति
एक पस्त कवि का विलाप ऐसा लगता है जैसे चीटियों ने
किसी छिपकली को खाकर छोड़ दिया हो ।

जब हम मशीनगन की गोलाबारी के बीच उसे लेकर चले गए थे
मुझे यक़ीन था कि उसकी अभी भी गरम देह
शब्दों के रूप में फिर से जन्म लेगी
अब मैं शब्दों की मौत देख रहा हूँ । मुझे पता है
कि नष्ट होने की कोई हद नहीं है । हमारे चले जाने के बाद
सिर्फ काली मिट्टी बची रहेगी
जो अक्षरों सी बिखर जाएगी । शून्य और धूल के ऊपर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास