भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुहुपांजली / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
सूती पड़ी है रात
दिन नैं
हांचळ में दाब’र
आभै री
सूनी सड़का माथै
निकळ्या है तारा,
चांद री अगुवाई में
करबां नै पै ’रेदारी
केळी लेंवता, अळूंघता
कदै कदास सूणीजै,
भूसतां गण्डक
चिरचिरांवती कोचरी
पून रचै
कोई जाळ
बादळां साथै रळ’र।
थोडी सी’क
ताळ पाछै
डरी थकी
हिरणी सी
धरणी माथै धंवर
कै आभै माथै बादळ
समझौतो होंवता ई
कर लेसी कब्जौ।
निज रो फरज निभावणियां
खेत होवणियां
तारां’रै सोग में
फगत आंगण
उभौ बंवळ ई देवै
हिवडै सूं पुहुपांजळी।
पीळा फूल
अणबोल्यां फेंक’र।