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पुहुपां सूं भरया ऐ मारग कठै जावै / पृथ्वी परिहार
Kavita Kosh से
परभात, हरमेस परभात
सौरम री बुआरी सूं बुआरै
बगत रा घणां सारा पानका।
लाम्बी पूंछ आळी गिलारी
जद चौकी माथै
चिड़ी साथै
पैली चा पीवै।
म्हारी गळी-गुवाड़
गांव खेत रा सगळा रूंखां नै
पतझड़ नाई ऐक ई भच्चाकै कतर दिया
तावड़ै रो आरसी भी मुळकै आजकाळै
आं नूंआं रंगरूटां नै देख-देख।
आ पुहुपां री, सौरम री रूत
जद थांरी उडीक री हद तांई लाम्बी बधै
सै‘तूत सी आल्ली, कंवळी खट-मीठी।
भाई, खळां में पूगै मोट्यार कणक री सौरम
थारै पुराणैं कुड़तै माथै जमीं बूफण-स्याळ
मेहणत री मदभरी नींद
इण्एा बगत रो फुटरापो घड़ै।
उतरतै फागण री कळयां पूछै
पुहुपां सू भरया ऐ मारग कठै जावै।