पूँजीवाद / विष्णु नागर
पूंजीवाद में बस इतनी-सी खामी है
कि उसका नाम पूंजीवाद है
उस पर आरोप है कि वह ज्यादातर लोगों का शोषण करता है
भूख, गरीबी, बेरोजगारी, वेश्यावृत्ति, हिंसा के अंधेरे में
उन्हें धकेलता है
लोग सोचते हैं कि कभी कोई दीवार आएगी
जिसके बाद उन्हें धकेलना संभव नहीं होगा
लेकिन वह दीवार कभी नहीं आती
क्योंकि वह होती ही नहीं
पूंजीवाद को यह आरोप स्वीकार है
लेकिन फिर भी पूंजीवाद कहता है कि वही तो है जो लोगों को अन्ततः
समाजवाद की तरफ ले जा सकता है
लोग जाना नहीं चाहते तो वह क्या करे
क्या इतना भी न करे कि वह बना रहे, मजबूत होता जाए, फैसला जाए?
आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण आदि कहाय?
बहरहाल पूंजीवाद एक कर्मयोगी है
मन, वचन, कर्म से
वह यह सिद्ध करने का प्रयत्न करता है
कि वह पूंजीवाद होकर भी पूंजीवाद नहीं है, शोषण वह नहीं करता
लोगों को गरीबी की ओर वह नहीं धकेलता
वह तो रोजी-रोटी देता है, आगे आने के अवसर देता है,
समृद्धि लाता है लेकिन आलसी लोगों का कोई क्या करें?
आखिर दुनिया में वहीं लोकतंत्र है, जहां पूंजीवाद है
वही है जो मानवाधिकारों की रक्षा करता है
वही है जो तीसरा विश्वयुद्ध नहीं होने दे रहा
(और जो वह होने देता है, उसे विश्वयुद्ध नहीं कहा जा सकता)
वही है जो पूंजी का वैश्विक प्रवाह सुगम बनाए हुए है
सट्टेबाजी से कमाने के अवसर वही देता है
बहरहाल पूंजीवाद अपने बारे में बहस नहीं चाहता
वह अपनी और सिर्फ अपनी तारीफ सुनना चाहता है
और सबको अहसास कराता है कि उसका कोई विकल्प नहीं
वही परम सत्य है, चिन्मय है, चिरंतन है
शिव है, सुन्दर है, कल्याणकारी है
वही अजन्मा है, अननुमेय है, अपरिभाषेय है
आप पूंजीवाद कहकर उसकी निंदा करो तो आपकी मरजी
और यह विश्वास करो कि समाजवाद एक दिन आ जाएगा
तो आपकी मरजी
आप इसके लिए गोली-डंडे खाना चाहो तो आपकी मरजी
आप भूख से मरो, बीमारी से मरो तो आपकी मरजी
वैसे इस देश में पूंजीवाद
इसलिए भी है कि ईश्वर की ऐसी ही मरजी है
और कौन है जो आजतलक उसकी मरजी के खिलाफ जा सका है?