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पूछता हूँ मृत्यु से / प्रतिभा किरण
Kavita Kosh से
अभी थोड़ी देर और बैठा हूँ
अपनी बरौनियाँ महसूसता
नवजात हो गया हूँ
हथेली की ओर उन्मुख
मेरे हाथों की उँगलियों की धारियाँ
कम होती जा रहीं हैं
अभी विछोह ग्रन्थि
प्रभावित होने को है
और मैं रो पडूँगा बिन आँसू के
इस बार चिपटने को माँ नहीं
और मेरी चेतना भी जा रही
मैं कुछ न देख सकूँगा अब
किसने मूँदी मेरी खुली आँखें
किसने डाला मुँह में
तुलसी-गंगाजल
पृथ्वी के हल्के अनिवार्य सदस्यता
प्रमाण पत्र के योग्य
बन सका या नहीं मैं
मृत्यु से पूछता हूँ
हकलाती हुई दाँतों के बीच
धर-दबाई बैठी है, जवाब