ऊपर 
मेरे घर 
की छत पर 
हल 
चला दिया है
और उतर कर 
उसने नीचे 
मेरे आँगन के 
बिरवे पर 
आता हुआ 
फल 
जला दिया है
इसीलिए 
मेरे चौके में 
सारी की सारी सब्ज़ी
बाज़ार की है
और खाते हैं 
बाज़ार के ही लोग 
बैठकर 
मेरे चौके में 
मैं बचा नहीं पाया 
चौके का 
बाज़ार हो जाना
क्योंकि 
मचा नहीं पाया 
घर में 
बाज़ार वालों की 
तरह 
शोर
इसीलिए वे 
नाराज़ हो गये
और नाराज़ होकर 
उन्होने 
मेरे घर को 
बाज़ार कर दिया
यह बात तो 
एक हद तक 
समझ में 
आती है
मगर समझ में 
यह नहीं आया 
कि सूरज ने 
मेरे घर की छत पर 
हल क्यों चला दिया
और उसने 
नीचे उतर कर
मेरे आँगन के 
बिरवे पर 
आते हुए फल को 
क्यों जला दिया
क्या करता मैं 
इसे जानने के लिए
सिवा सूरज से 
इसका सबब 
पूछने के लिए 
निकल पड़ता
चल पड़ता 
इसीलिए उदय और अस्त के
 
धनी 
अँचलों की ओर
पीठ देकर 
बाज़ार के 
शोर को !
( कविता संग्रह, "नीली रेखा तक" से )